क्या भारत में 4 दिनों का वर्क वीक संभव है? जानिए क्या कहती है सरकार
Four Days Work Week
नई दिल्ली: Four Days Work Week: देश में चार दिन काम करने और तीन दिन छुट्टी लेने की चर्चा इन दिनों तेजी से हो रही है. लेबर मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि नए लेबर कोड के तहत यह संभव है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ. कुल काम के घंटे कम नहीं हुए हैं, सिर्फ उन्हें अलग तरीके से बांटने का विकल्प दिया गया है.
फोर डे वर्क वीक कैसे होगा
लेबर मंत्रालय ने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से बताया कि नए लेबर कोड के अनुसार हफ्ते के कुल 48 घंटे अलग-अलग तरीकों से पूरे किए जा सकते हैं. इसका मतलब है कि चार दिन काम करके तीन दिन छुट्टी लेना संभव है, लेकिन हर कामकाजी दिन 12 घंटे तक काम करना होगा. मंत्रालय के अनुसार, “चार दिन के लिए 12 घंटे का विकल्प है, बाकी तीन दिन पेड हॉलिडे होंगे. अगर कोई कर्मचारी रोज 12 घंटे से अधिक काम करता है तो उसे ओवरटाइम माना जाएगा और दोगुनी तनख्वाह मिलेगी. हफ्ते में 48 घंटे से ज्यादा किसी को भी काम नहीं करवाया जा सकता.”
इसमें लगातार 12 घंटे काम करने की बाध्यता नहीं है. लंच ब्रेक, रेस्ट टाइम या शिफ्ट के बीच का गैप भी कामकाजी घंटों में शामिल किया जा सकता है, ताकि कर्मचारियों को आराम का पर्याप्त समय मिले.
नए लेबर कोड्स में और बदलाव
21 नवंबर 2025 को सरकार ने पुराने 29 लेबर कानूनों की जगह चार नए कोड लागू किए. ये हैं: वेजेस कोड 2019, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020, सोशल सिक्योरिटी कोड 2020 और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड 2020.
इनका मकसद नियमों को सरल बनाना, पूरे देश में काम के घंटे, सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा को बेहतर बनाना है. नए कोड में पहली बार गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स और एग्रीगेटर वर्कर्स को शामिल किया गया है. आधार से लिंक यूनिवर्सल अकाउंट नंबर के माध्यम से उनके वेलफेयर फंड को पोर्टेबल बनाया गया है.
फिक्स्ड टर्म कर्मचारियों को अब परमानेंट स्टाफ जैसी सुविधाएं मिलेंगी, जिसमें छुट्टी, स्वास्थ्य कवर और सामाजिक सुरक्षा शामिल हैं. ग्रेच्युटी का नियम भी बदला गया है, जो अब सिर्फ एक साल लगातार नौकरी करने पर भी लागू होगा.
कौन कब अपनाएगा नया विकल्प
एक्सपर्ट्स के अनुसार, ‘फोर डे वर्क वीक’ हर सेक्टर में लागू नहीं हो पाएगा. कुछ सेक्टर जल्दी इसे अपनाएंगे, जबकि कुछ पुरानी व्यवस्था जारी रखेंगे. यह कर्मचारियों और कंपनियों के बीच सहमति पर निर्भर करेगा. कुल मिलाकर, नए लेबर कोड घंटे कम नहीं कर रहे, बल्कि उन्हें लचीले ढंग से बांटने का विकल्प दे रहे हैं.